भले ही भारत एक लोकतांत्रिक देश है,परन्तु जिस प्रकार से दिल्ली में वृद्ध एवम असहाय ईपीएस 95 पेंशनर्स के साथ केंद्र सरकार की पुलिस ने बदसलूकी की और बल प्रयोग किया है उसे हम कदापि लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा नही कह सकते है। ये वृद्ध EPS 95 पेंशनर श्रम मंत्री और CBT सदस्यों को पेंशनर्स की पीड़ा बताने के लिये मिलने की माँग ही तो कर रहे थे।
ये कमजोर और अहिंसक वृद्ध प्राणी न तो उपद्रवी थे और न ही हिंसा फैला रहे थे और न ही असमाजिक तत्व थे, ये तो केवल मंत्री महोदय को पेंशनर्स की पीड़ा बताना चाहते थे, पर सरकार ने इन्ही पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी, ये अत्यंत ही खेदजनक है और कष्टदायक है। ये सरकारी मशीनरी का अत्यन्त ही घृणित उपयोग था और हर प्रकार से लोकतांत्रिक व्यवस्था के विपरीत था।
हम ईपीएस 95 पेंशनर्स को ये सरकार बहुत तुच्छ प्राणी समझती है। अब समय आ गया है कि इस असंवेदनशील सरकार को हमे ये अहसास होगा कि हम इतने भी कमजोर और छोटे नही है जितना ये मोदी सरकार हमे समझती है।
हम भले सड़को पर एकजुट होकर किसानों की तरह आन्दोलन नही कर सकते है परंतु हम अपना सबसे बड़ा लोकतांत्रिक हथियार सरकार के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते है, वो हथियार है हमारा बहुमुल्य वोट।
भले ही हमने इस पार्टी को पूर्व में अपना वोट दिया हो, परन्तु इस बार हमे बिना किसी प्रकार के झांसे या लाग-लपेट में आये, सरकार के खिलाफ अपना बहुमुल्य वोट दे कर उसे अहसास करना होगा कि हम इतने भी छोटे नही है जैसा ये सरकार हमे समझती है। ये मुकाबला एक चींटी और एक घमंडी हाथी के बीच है। कहानी का अंत सभी लोग जानते होंगे।
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