माननीय महोदय,
1998, 86वें अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन ने मौलिक सिद्धांतों और काम पर अधिकारों पर घोषणा को अपनाया है. इस घोषणा में चार मूलभूत नीतियां शामिल हैं-
श्रमिकों के स्वतंत्र रूप से संबद्ध होने और सामूहिक सौदेबाजी करने का अधिकार
जबरन और अनिवार्य श्रम का अंत
बाल श्रम का अंत
श्रमिकों के बीच अनुचित भेदभाव का अंत
उपर्युक्त मौलिक सिद्धांत और अधिकार 1998 में ILO ने स्थापित किए थे.
भारत में कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (EPS-95) के सदस्य पेंशनभोगियों की त्रासदी
यह पत्र लगभग 67 लाख पेंशनभोगियों और 17.2 करोड़ कार्यरत कर्मचारियों से संबंधित है. इन पेंशनभोगियों ने अपने पूरे जीवन में अधिकतम 30-35 वर्षों तक काम किया है और वे बहुत वृद्ध हैं. पेंशन नीतियों के अनुचित कार्यान्वयन के कारण, उन्हें वर्तमान में 500 से 3000 रुपए तक पेंशन मिल रहे हैं. लगभग 30 लाख पेंशनभोगियों को प्रति माह 1000/- रुपए से कम पेंशन मिल रहा है, जो उनके मासिक चिकित्सा खर्च के लिए भी पर्याप्त नहीं है. ये सभी पेंशनभोगी बहुत ही अनिश्चित और कठिन परिस्थितियों में हैं. वे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. राष्ट्रीय हित के लिए काम करने और पूरा जीवन बिताने के बाद भी, उन्हें सुनिश्चित पेंशन, सुनिश्चित सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक न्याय नहीं मिल रहा है. अतः आपसे नेक हस्तक्षेप का अनुरोध है.
1). इस संबंध में भारत सरकार द्वारा विधान –
भारत सरकार ने 1952 में “कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम 1952” अधिनियमित किया। इस अधिनियम के तहत, “भविष्य निधि योजना 1952 का प्रावधान” बनाया गया था. फिर, 1971 में “कर्मचारी परिवार पेंशन योजना 1971” अधिनियमित किया गया. और 1995 की योजना को बंद कर दिया गया. नई पेंशन योजना “कर्मचारी पेंशन योजना 1995” (ईपीएस-95 संक्षेप में) शुरू की गई. अब वर्तमान में यह पेंशन योजना “कर्मचारी पेंशन योजना 1995” प्रचालन में है. हालांकि, भारत सरकार इस पेंशन योजना को ठीक से लागू नहीं कर रही है और इस संबंध में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का पालन भी नहीं कर रही है और परिणामस्वरूप पेंशनभोगियों / श्रमिकों को बार-बार न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया जा रहा है और उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है.
2) पेंशनभोगियों के साथ अन्याय
पेंशन योजना के पैरा 11(3) के तहत विकल्प के लिए “कट ऑफ डेट” के नाम पर उच्च पेंशन के लाभ से पेंशनभोगी वंचित थे. इसलिए, हजारों पेंशनभोगियों ने न्यायालयों का दरवाजा खटखटाया. फिर, विभिन्न उच्च न्यायालयों ने माना कि ऐसी कोई कट ऑफ तिथि नहीं है.
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