प्रतिष्ठा मेँ
अध्यक्ष/महासचिव/ एवं समस्त पदाधिकारी गण
भारतीय मजदूर संघ
मैं पन्ना जी श्रीवास्तव एक मजबूर, असहाय, निरीह और आर्थिक दृष्टिकोण से सुदामा से भी बदतर आप सभी को उचित सम्मान के साथ आपके संज्ञान मे अपने विषय में दर्पण की तरह स्पष्ट प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करते हुये कुछ प्रकाश मे लाना चाहता हूँ ताकि आप सभी को हमारे अंधकार भरे जीवन का आभास हो सके।
महोदय हमारा यह श्रमिक संगठन जहाँ तक मेरे संज्ञान मे है विश्व का सबसे विशाल सदस्यता वाला संगठन है परन्तु ताड के वृक्ष के समान हम ईपीयस पेँशनरोँ के लिये यह पूर्णतः अलाभकारी है।हम सबको यह कहने में कोई भी संकोच नही है कि पूर्ववर्ती श्रम संगठन का मार्ग अपनाने की प्रक्रिया मे यह भी संगठन पीछे नहीं रहना चाहता है तभी हम पेँशनरोँँ के हित की बात सरकार से करने में यह संगठन वह कदम नही उठा रहा है जिसकी हर श्रमसँगठन से श्रमिकों के हितार्थ अपेक्षा रहती है।
महोदय यह आप सभी के सामने खुली किताब की तरह एकदम स्पष्ट है कि 1971 का अंशदायी पारिवारिक पेंशन योजना वर्ष 1995 तक गैर संशोधित रही फलतः वर्ष2014 तक उक्त योजना की बेबस असहाय महिला पेँशनर्स मात्र 14/- रुपये पेंशन रुप मे पाती थी परन्तु हमारे सभीँ भी सशक्त श्रम सँगठनोँ को इसकी स्पष्ट जानकारी होते हुये सभी ने मौन वृत का संकल्प ले लिया था।
पुनः वर्ष 1995से आज तक इतने बडे दीर्घकाल बीतने के बाद भी रथी महारथी श्रमिक संगठनों ने ईपीयस मे उचित संशोधन की न तो माँग उठाया और न ही कोई आन्दोलन ही किया।कारण हम लोग किसी भी श्रम सँगठनोँ के लिये अनुपयोगी तथा भार समान थे। और अब जब हमलोगोँ ने स्वय स्वतः इस योजना में उचित संशोधन के लिये अपनी कमर कस ली है तो सभी श्रम संगठन साख लेने के लिए अपनी धुन अलाप रहे हैं और हम सभी को यह कहने के लिये मजबूर कर रहे हैं कि "मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिये मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो।" और इसके साथ "हमका उनसे वफा की है उम्मीद जो नही जानते वफा क्या है।"
अतः अन्त मे हम सभी ईपीयस पे़शनरोँ की सभी श्रमिक संगठनों से यही प्रार्थना है कि हमे अपना सहयोग हमारे आन्दोलन के अनुसार दे अथवा हमे हमारे हाल पर छोड़ दें हम सभीँको उनसे कभी भी कोई शिकायत न रहेगी।
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