सरकारी सिस्टम के सामने कई बार अच्छे-अच्छे लोग घुटने टेक देते हैं लेकिन दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले एक जवान ने आत्मबल के भरोसे 97 साल की उम्र में अपने अधिकारी की जंग जीत ली। राजस्थान के झुंझनू के 97 वर्षीय सैनिक बलवंत सिंह ने दशकों तक सिस्टम से लड़ाई लड़ी और अंत में उनकी जीत भी हुई। मिलिट्री ट्राइब्यूनल ने उन्हें विकलांगता पेंशन देने की मंजूरी दे दी है।
15 दिसंबर 1994 में उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अपना एक पैर खो दिया था। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक वह इटली में धुरी शक्तियों के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे। तभी एक सुरंग में हुए धमाके में वह बुरी तरह घायल हो गए। इसके बाद उन्हें दो साल के लिए सेना से बाहर कर दिया गया।
भारत लौटने के बाद उनका ट्रांसफर पंजाब रेजिमेंट से राजपुताना राइफल्स में कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने बुनियादी पेंशन के साथ सेवा छोड़ दी। 1972 में सरकार एक योजना लेकर आई जिसके तहत उन सैनिकों को आखिरी वेतन के बराबर पेंशन दी जानी थी। यह पेंशन उन सैनिकों को मिलती है जिन्हें घायल होने की वजह से नौकरी छोड़नी पड़ी थी। हालांकि इस योजना से उन सैनिकों को बाहर रखा गया जिन्होंने पहले या दूसरे विश्वयुद्ध में लड़ाई लड़ी थी। बता दें कि दूसरे विश्वयुद्ध में 25 लाख से ज्यादा भारतीय शामिल हुए थे।
दिल्ली की आर्म्ड फोर्सेज ट्राइब्यूनल बेंच ने जयपुर यूनिट से केस लेकर अहम फैसला सुनाया। इससे पहले जयपुर की बेंच ही मामले की सुनवाई कर रही थी।चेन्नई के प्रशासनिक सदस्य ने कहा, अब उन्हें पूरी पेंशन दी जाएगी, साथ ही 2008 से एरियर दिया जाएगा। सिंह के वकील रिटायर्ड कर्नल एसबी सिंह ने कहा कि सैनिक का परिवार अब बहुत ही खुश है। बलवंत सिंह की विकलांगता 100 प्रतिशत है क्योंकि उनका पूरा पैर ही कट गया थ।
बलवंत सिंह स्वतंत्रता से पहले तीन साल दो महीने और 16 दिन तक सेना में रहे। इसी दौरान उनका पैर कट गया था। उनके बेटे सुभाष सिंह ने कहा कि ट्राइब्यूनल के फैसले से वे खुश हैं।
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