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यूपी में OPS और NPS पर वार बरकरार, कर्मचारी-अफसरों के बीच बैठक जारी | पुरानी व्यवस्था और NPS में क्या अंतर है ?

उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) को दोबारा लागू करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं. न्यू पेंशन स्कीम (NPS) को लेकर उनका विरोध कम होने का नाम नहीं ले रहा है. कर्मचारियों ने 25 अक्टूबर से तीन दिन हड़ताल का ऐलान कर रखा है और योगी सरकार लगातार कर्मचारियों को मनाने में जुटी हुई है. इसी क्रम में सोमवार को मुख्य सचिव की अगुवाई में अधिकारियों से कर्मचारी नेताओं की बातचीत हुई लेकिन इसका कोई नतीजा निकलकर सामने नहीं आया. इसके बाद एक बार फिर मंगलवार को पुरानी पेंशन बहाली के संबंध में बैठक बुलाई गई. ताजा समाचार ये है कि पिछले 3 घंटे से लगातार बैठक चल रही है. नियुक्ति विभाग से राज्य कर्मचारियों का प्रतिनिधिमंडल लगातार बातचीत कर रहा है. ओपीएस बहाली को लेकर अभी भी पेंच फंसा हुआ है.
इससे पहले सोमवार को मामले में वित्तीय स्वीकृति लेने आदि की बात सामने आई, जिसके बाद तय हुआ कि मंगलवार को दोबारा बैठक होगी. उधर कर्मचारी नेताओं ने सरकार के रुख पर नरमी ​बरतते हुए उम्मीद जताई कि मामले का हल कुछ न कुछ जरूर निकल आएगा. कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री शिव बरन सिंह ने बताया कि मुख्य सचिव और बड़े सीनियर अफसरों के साथ हमारी बैठक हुई.

शिव बरन सिंह ने बताया कि हमने इस दौरान अपनी मांग रखी. इसमें कुछ मुद्दों पर चर्चा हुई. चूंकि मामला वित्तीय है, लिहाजा तय हुआ है कि मंगलवार को फिर से बैठक होगी. उन्होंने कहा कि हड़ताल का ऐलान 25 अक्टूबर से है, लिहाजा अभी दो दिन का समय हमारे पास है. हमें अभी तक लग रहा है कि सरकार सीरियस है. हमें उम्मीद है कि कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा. उन्होंने कहा कि हम कोई ऐसी चीज नहीं मांग रहे हैं, जो सरकार पूरी नहीं कर सकती है. जो अनियमितताएं हैं, उन्हें दूर किया जा सकता है.
जानकारी के अनुसार बैठक में मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय के अलावा एपीसी भी शामिल हुए. इनके अलावा बैठक में अपर मुख्य सचिव नियुक्ति & कार्मिक भी मौजूद रहे. वहीं कई विभागों के प्रमुख सचिव और प्रमुख सचिव वित्त ने भी शिरकत की. करीब दो घंटे ये बैठक चली.

पुरानी व्यवस्था और NPS में क्या अंतर है ?

पुरानी पेंशन व्यवस्था


— पुरानी पेंशन व्यवस्था का शेयर मार्केट से कोई संबंध नहीं था.

— पुरानी पेंशन में हर साल डीए जोड़ा जाता था.

— पुरानी पेंशन व्यवस्था में गारंटी थी कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा उसे पेंशन के तौर पर मिलेगा.

— अगर किसी की आखिरी सैलरी 50 हजार है तो उसे 25 हजार पेंशन मिलती थी. इसके अलावा हर साल मिलने वाला डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी.

— नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था.

— जीपीएफ एकाउंट में कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था.

— जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था.

— सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी.

नई पेंशन व्यवस्था

— 1 अप्रैल 2005 से लागू हुई न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस)

— न्यू पेंशन स्कीम एक म्‍यूचुअल फंड की तरह है. ये शेयर मार्केट पर आधारित व्यवस्था है.

— पुरानी पेंशन की तरह इसमेें पेंशन में हर साल डीए नहीं जोड़ा जाता.

— कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले.

— एनपीएस के तहत जो टोटल अमाउंट है, उसका 40 प्रतिशत शेयर मार्केट में लगाया जाता है.

— कर्मचारी या अधिकारी जिस दिन वह रिटायर होता है, उस दिन जैसा शेयर मार्केट होगा, उस हिसाब से उसे 60 प्रतिशत राशि मिलेगी. बाकी के 40 प्रतिशत के लिए उसे पेंशन प्लान लेना होगा.

— पेंशन प्लान के आधार पर उसकी पेंशन निर्धारित होगी.

— नई व्यवस्था में कर्मचारी का जीपीएफ एकाउंट बंद कर दिया गया है.


विरोध इन बातों पर है

— 1 जनवरी 2004 को जब केंद्र सरकार ने पुरानी व्यवस्था को खत्म कर नई व्यवस्था लागू की. एक बात साफ थी कि अगर राज्य चाहें तो इसे अपने यहां लागू कर सकते हैं. मतलब व्यवस्था स्वैच्छिक थी. यूपी में इसे 1 अप्रैल 2005 को लागू कर दिया. पश्चिम बंगाल में आज भी पुरानी व्यवस्था ये लागू है.

— पुरानी पेंशन व्यवस्था नई व्यवस्था की तरह शेयर बाजार पर आश्रित नहीं है. लिहाजा उसमें जोखिम नहीं था.

— न्यू पेंशन स्कीम लागू होने के 14 साल बाद भी यह व्यवस्था अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है.

— नई स्कीम में कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले. क्योंकि शेयर बाजार से चीजें तय हो रही हैं.

— नई व्यवस्था के तहत 10 प्रतिशत कर्मचारी और 10 प्रतिशत सरकार देती है. लेकिन जो सरकार का 10 प्रतिशत का बजट है, वही पूरा नहीं है.

— मान लीजिए यूपी में मौजूदा समय में 13 लाख कर्मचारी है. अगर उनकी औसत सैलरी निकाली जाए तो वह 25 हजार के आसपास है. इस हिसाब से कर्मचारी का 2500 रुपए अंशदान है. लेकिन इतना ही अंशदान सरकार को भी करना है. मोटे तौर पर सरकार के ऊपर कई हजार करोड़ का भार आएगा. लेकिन सरकार के पास इसके लिए बजट ही नहीं है.

— नई व्यवस्था के तहत मान लीजिए अगर किसी की पेंशन 2000 निर्धारित हो गई तो वह पेंशन उसे आजीवन मिलेगी. उसमें कोई उतार-चढ़ाव नहीं होगा. पुरानी व्यवस्था में ऐसा नहीं था. उसमें हर साल डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी.

— विरोध शेयर मार्केट आधारित व्यवस्था को लेकर है. कर्मचारियों का कहना है कि मान लीजिए कि एक कर्मचारी एक लाख रुपये जमा करता है. जिस दिन वह रिटायर होता है उस दिन शेयर मार्केट में उसके एक लाख का मूल्य 10 हजार है तो उसे 6 हजार रुपये मिलेंगे और बाकी 4 हजार में उसे किसी भी बीमा कंपनी से पेंशन स्कीम लेनी होगी. इसमें कोई गारंटी नहीं है.

— पहले जो व्यवस्था थी, उसमें नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था. उसमें कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था. जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था और सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी. नई व्यवस्था में जीपीएफ अकाउंट बंद कर दिया गया है.

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